Sunday 27 July 2014

"मन बैरी माने ना … ………। "

                    मेरा मन कभी भी एक स्थान पर नहीं रह पाता मैं बार बार इसको पकड़ कर लाता हुँ लेकिन ये हर बार मुझे धोका दे देता है। मैं इसे बहुत समझाता हुँ लेकिन नहीं मानता। मुझे लगता है इसका एक ही उपाय है वो है ध्यान। निरंतर ध्यान लगाने से मन एकाग्र हो जाता है। ध्यान लगाना मैंने भी शुरू कर दिया मगर ये क्या मेरा मन तो इधर उधर दौड़ लगा रहा है। मै परेशान हो गया ये मेरे साथ क्या हो रहा है कुछ भी समझ में नहीं आ रहा। किसी ने बताया रोजाना करते रहो करते करते हो जायेगा। बाबा रामदेव जी भी कहते है "करने से होता है भैया " हम करने लगे करते करते एक महीना हो गया।
                      एक महीना हो जाने के बाद भी जब मन एक स्थान पर नहीं आया तो दादीमाँ याद आने लगी। दादी माँ याद आने का कारण कोई परेशानी वाली बात नहीं थी बल्कि उनकी कही हुई पुरानी बात याद आ गई दादी माँ कहती थी "मन बैरी माने ना मना तन्न कैया समझाऊ ,मन कपटी माने ना मना तन्न कैया समझाऊ "और कई प्रकार के  उद्धारण भी देती थी जैसे घोड़ा हाथी आदि। वो इसे एक भजन के रूप में गाती थी। उस वक्त मैं बच्चा था और बस  इतना ही समझता था कि दादीमाँ को कुछ चटपटा खाने का मन कर रहा होगा और डॉक्टर ने एैसा खाने को मना किया हुआ था इसलिए मन को समझा रही होंगी लेकिन आज समझ में आ रहा था कि ये सब माजरा मन को एक स्थान पर लाने का था। 
                       जैसे तैसे करके एक महीना और बीत गया लेकिन मन ध्यान में नहीं लगा। मैंने अभ्यास जारी रखा अब धीरे धीरे कुछ असर पैरों से शुरू हुआ पैर स्थिर होने लगे, बैठे बैठे सुन्न पड़ने लगे मुझे लगा असर हो रहा है। 
                       यह सब चलता रहा फिर एक दिन एक महात्मा जी का लेख पढ़ा जिसमे लिखा था नाभि पर ध्यान केंद्रित करो मैंने ऐसा करना शुरू किया इतने में ही मेरा एक मित्र जो कि आजकल योग की शिक्षा देता है। उसने मुझे बताया नाभि पर नहीं नाक पर ध्यान केंद्रित कर नजरे नाक पर जमा। मैंने ऐसा करना शुरू किया ये क्या अब मेरा मन कभी नाभि पर कभी नाक पर और कभी बाहर पूरी दुनिया में विचरण करने लगा। कभी बचपन की बाते याद आती मस्ती से खेलना ना कोई फिक्र ना कोई टेंसन खाना पीना सोना खेलना और फिर अचानक याद आ जाता बच्चों की फीस भरनी है बनिए का हिसाब करना है मकान का किराया देना है और ध्यान एकदम भग्न हो जाता।
                        मन बड़ा चंचल है बस थोड़ा सा ढीला छोड़ो तो बस उड़ने लगता है। लेकिन मैंने तो ठान लिया था कि मन को एकाग्र जरूर करूंगा। अब मैंने फिर से अभ्यास करना आरंभ किया मन को एकदम बांध लिया परन्तु ये क्या जवानी की कहानियाँ याद आने लगी कॉलेज का कम्पाउंड गार्डन केन्टीन सब ध्यान में आ रहा है मेरी क्लास के साथी सुरीली आवाज वाला मदुर संगीत फिर अचानक ध्यान डाँवाडोल हो जाता है घर वाली की डिमांड की लम्बी सी लिस्ट जिसमे सब्जी से लेकर सोने के जेवर तक की सभी डिमांड लिखी थी ध्यान फिर नाभि से नाक होता हुआ सीधा बाहर आ धमका।  
                        अब मेरे सब्र का बांध टूट रहा था कि मुझे हमारे कुलगुरु ने बताया कि हनुमान जी मन को जीत चुके है उनकी उपासना करो इससे मन स्थिर हो जाता है मन को बस में करने के लिए हनुमान जी को मनाने के लिए मंगलवार का व्रत करना शुरू किया।एक टाइम भोजन करना, सुन्दर कांड पढ़ना, फिर ध्यान में मन लगाना मेरी यही दिनचर्या होगई , काम धंधा सब छूट गया। घरवाले सब चिंतित हो गए। पत्नी ने सारा वृतांत पिताजी को बताया पिताजी आग बबूला हो गए और फिर वो फटकार पड़ी कि सारा ध्यान सीधा काम घंधे में आ गया। 
                         फिर एकदिन पिताजी ने शांति से समझाया कि "बेटा यह मन बड़ा ही चंचल होता है यह किसी किसी के ही बस में आता है तुम्हे इस चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। यह मन संत महात्माओं का भी फिसल जाता है बेटा अपनी तो ओकात ही क्या  है। इस चंचल मन को पूरी तरह से काम धंधे में लगा। यह ध्यान समाधी सब खेल है।  यह  किसी को समझ में आ जाता है और कोई इस खेल में उलझ जाता है। महात्मा बुद्ध कहते है सबसे पहले शीला चार का अभ्यास करो फिर ध्यान का ,शीलाचार -- काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह के त्याग को कहते है इसका अभ्यास करो समझे  " यह सब बाते सुनने के बाद मेरी  समझ में यह आया कि दादीमाँ ठीक ही गाती थी। "मन बैरी माने ना … ………। "