Tuesday 12 January 2016

उठो,जागो,रुको मत ........

उठो,जागो,रुको मत ........

         “उठो, जागो, रुको मत, जब तक लक्ष्य तक ना पहुँच जाओ...” यह एक ध्येय वाक्य है स्वामी विवेकानंद जी का, इन चार शब्दो मे पुरा जीवन रहस्य छुपा हुआ है, हम आज एक एक शब्द को जब परिभाषित करेंगे तो हमे यह पता चलेगा कि इन चार शब्दो मे स्वामी जी किस प्रकार पुरा जीवन का सार भर दिया है,


          1. उठो --- इस शब्द मे एक सामान्य सी बात लगती है बस उठो, लेकिन कैसा उठना क्या अपने स्थान से उठकर चलना ही उठना है, नही आप लोगो को याद होगा कि जब लोग कहते है कि “पैरो पर खडे होकर दिखलाओ तो जमाना तुम्हारा है,” कई लोगो को कहते हुये सुनते है कि वह तो अपने पैरो पर खडा हो गया, मतलब कमाई करने लग गया, अब इसी बात को मै कहता हुँ कि उठो का मतलब अपने आप पर निर्भर होना, स्वावलंबी होना, हम जब खुद का काम खुद करने लग जाये किसी और पर निर्भर ना रहे तो इसका मतलब हम उठ गये है, कहते है “पराधीन सपनेहुँ सुख नाही” स्वामी जी का पहला जीवन विज्ञान यही है हम अपने पैरो पर खडे होकर आत्मनिर्भर हो जाये, अपने स्तर को ऊँचा करले,


           2. जागो --- इसका अर्थ है अपने आप को पहचानना, जब मनुष्य अपने आप को जान जाता है आत्म ज्ञान हो जाता है तो उसे जीवन जीने का लक्ष्य मिल जाता है मकसदमिलने के बाद सब काम छोड लगन लग जाती है “ आज आपके दिलो मे उमड रहा अनुराग, फिर से जाग रे कबिरा जाग” जैसे कबीर जी जाग गये, मीरा बाई जाग गई,”ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन” जब किसी काम की लगन लग जाती है मन मगन हो जाताहै,  जैसे हनुमानजी को जागृति हो गई, तुलसी दास जी लिखते हैकि जब हनुमान जी जामवंत जी ने कहा-  “राम काज लगि तव अवतारा, सुनतहि भयहुँ पर्वता कारा” हनुमान  जी को जब पता चल गया कि मेरा जन्म किस काम के लिये हुआ है वे पर्वत के समान आकार वाले हो गये, मंजिल पाने के लिये पहले जागना पडता है “अब जाग उठो कमर कसो मंजिल की राह बुलाती है” जाग कर फिर कमर कस लो, मंजिल फिर आपका रास्ता देख रही है,आप को बुला रही है, विवेकानंद जी ने कहा- जागो.. अपने आप को पहचानो , अपना लक्ष्य तय करो, अपनी अंदर छिपी शक्तियाँ पहचानो,


           3. रुको मत – जब अपने आपको पहचान गये लक्ष्य दिखाई दे गया, अपनी अंदर छिपी शक्तियाँ हमे पता लग तब रुको मत अब चलते रहो, पुज्य पिता जी लिखते है –“चले हो अभय क्रांति नुतन मचाते,प्रफुल्लित ह्रदय से सृजन गीत गाते, फिर निडर होकर चलो और ह्रदय मे प्रशन्न्ता लेकर चलो, जब हनुमानजी को पता चल गया कि मेरा जन्म राम काज के लिये ही हुआ है तो फिर विश्राम किस बात का,जब लंका मे जा रहे थे तो समुंद्रभगवान राम जी दूत समझ कर विश्राम करने के लिये कहा लेकिन हनुमानजी ने शालीनता से मना कर दिया, तुलसी दास जी लिखते है “हनुमान तेहि परसाकर पून किन्ही प्रणाम, राम काज किन्हे बिनू मोहे कहा विश्राम” स्वामीजी ने भी यही कहा है,  मंजिल पाने के लिये अनवरत परिश्रम करते रहो, रुको मत ....


            4. मंजिल प्राप्त हो जाये तब तक --  मंजिल मिलना और मंजिल पाना, दोनो अलग अलग बाते है, मंजिले मिल जाती है राह चलते चलते,और मंजिले पाई जाती है कमर कस मेहनत से, जब मेहनती हो गये तो हमे जीना आ गया, जीवन का मतलब समझ मे आ गया,


             
             

            आज स्वामी विवेकानंद जी की जयंति है, उन्होने जो कहा वह मै ने समझा और मै ने जो लिखा वह आप लोगो को कितना समझ मे आया आप लोगो के कमेंटस से ही पता चलेगा, आप भी आज उस महान विभूति को एक बार अवस्य याद करना और उनकी तरह स्वस्थ शरीर और प्रशन्न मन युक्त जीवन जीने की कौशीश करना, उठो, जागो, रुको मत .......
     



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