Thursday 6 November 2014

जिये तो जिये कैसे ..... ?

                जब मै किशोर अवस्था मे था तब एक गीत बहुत सुनाई देता था "जिये तो जिये कैसे बिन आपके...
 लगता नही दिल कही बिन आपके.." ये जो "आप" है ना ये समयानुसार बदल जाता है  बचपन मे लगता है कि
मम्मी पापा ही सब कुछ है इनके बीना कैसे जियेंगे लेकिन किशोर होते होते ये भाव मन मे किसी और को बिठा लेते है और लगने लगता है कि प्रेयसी के बिना एक पल भी जिना मुस्किल है लेकिन ढीठ इतने है कि जवानी आ गई फिर भी जी ही रहे है. जवान होते ही प्रेमिका से मन ऊब जाता है या उसे बदलने का मन होने लगता है अब इस समय ऐसा लगता है कि " अब तेरे बिन जी लेंगे हम ....जहर जींदगी का पी लेंगे हम.." पर कैसे जिया जाये ये बात अब भी समझ मे नही आती,दोस्तो को मै और दोस्त मुझे समझाते है "तु ना सही तो कोई और सही" ये सब अपने आप से छलावा है मन हार जाता है फिर इसी ऊहापोह मे घर वाले एक सुंदर सुशील कन्या से विवाह कर देते है तो कुछ दिन ऐसा लगता कि "तुम ही हो जिंदगी मेरी ....." लेकिन कुछ दिन बाद ये भ्रम भी टूट जाता है अब बच्चे हो जाते है तो लगता है बस ये ही मेरे जीने का सहारा है लेकिन यह सच नही है  फिर शुरू होती है एक हकीकत तब धन कमाई ही जीने का सहारा लगने लगता है फिर दौड शुरू होती है दुनियादारी समझ मे आती है भागम भाग भरी जिंदगी,लगता है अब जीवनभर बस एक ही काम है कमाई सिर्फ कमाई , लेकिन ये सहारा भी ज्यादा दिन नही चलता ,मन भटक जाता है .
                  यह भटकाव तो बचपन से ही चला आ रहा है,इस भटकाव मे कई लोग गलत राह पकड लेते है कोई सच्ची राह पर चल पडता है और कोई मेरे जैसा राह ढूंढता रह जाता है और पुछता फिरता है जिये तो जिये कैसे?
                   मैंने मेरे एक दोस्त से पुछ लिया " यार जीना नही आ रहा कैसे जीये ?उसने तपाक से जबाव दिया -"यार दारू पी और मजे कर जिंदगी का सबसे बडा आनन्द पीने मे है बस यही जिंदगी है," मैंने कहा ये तो "दानवो का काम है मानवो का नही"अरे यार! तु भी कहा दानव मानव के चक्कर मे पड गया सब पीते है दानव इसे सुरा कहते है देवता इसे सोमरस कहते है और मेरे जैसे ज्ञानी इसे डाइरेक्ट दारू कह देते है , बाकी है सब एक ही ,तु इसे दवा समझ कर पी लिया कर जिंदगी जीने का यह ही एक उत्तम रास्ता है.इससे लाइफ कलरफुल हो जाती है. वैसे भी आजकल फेसबुक वाट्सअप आदि पर हजारो उपदेश मिल ही जाते है चार दिन की जिंदगी है , आपने दुख देखे है तो एक इस विडिओ को देखो पता चल जायेगा असली दुख क्या होते है,आदि आदि
                    योग, आसन ,प्राणायाम,प्रात:काल भ्रमण ,मंदिर जाना,जप ,तप,यज्ञ,उपवास आदि कई उपाय ज्ञानी लोगो ने बताये तब जाकर कुछ कुछ समझ मे आने लगा कि परमात्मा से मिलन ही सच्चा सोदा है बाकी  जीवन गलत सोदा है, जीने की सही राह मिलती नजर आ रही थी बस अब जीना आने लगा था कि रोज जल्दी उठना और मंदिर जाना भगवान के दर्शन करना तब मिल ही जायेंगे भगवान ,जीना इतना सरल था और मुझे नही आ रहा था बडा अफसोस हुआ लेकिन सच्चाई एक दिन सामने आई जब  एक संत का उपदेस सुनने को मिल गया , संत महात्मा कह रहे थे " ये जीवन नाशवान है यह शरीर भी नश्वर है इसका मोह त्याग प्राणी यह सब भ्रम है,तुलसीदास जी सुंदर कांड मे लिखते है ,'जननी जनक बंधु सुत दारा,तनु धनु भवन सुह्रद परिवारा. सब के ममता ताग बटोरी ,मम पद मनहि बांध बरि डोरी. हे भक्तजनो! जो प्राणी माता, पिता, भाई, पुत्र, पत्नी, शरीर,धन,घर,मित्र,और परिवार इन सबको त्याग कर सिर्फ मेरे चरणो से अपने मन की डोर बांध लेता और अपनी कोई इच्छा नही रखता, वह हमेशा सुख दुख से दूर रह्ता है," मेरा मन फिर भटकने को होने लगा कि जब सब कुछ त्यागने के लिये ही बनाया था तो फिर इतना तामझाम दिया ही क्यो था ?
                      जिये तो जिये  कैसे ? यह यक्ष प्रश्न अब भी सामने खडा था फिर एक दिन शांतिकुंज हरिद्वार जाना हो गया वहा माँ गायत्री का मंदिर है और उसी मंदिर मे एक अजीब सा मंदिर है, जिसमे तीन शीशे लगे हुये है और मंदिर पर लिखा है " भटका हुआ देवता" मन प्रफुल्लित हो गया कुछ भटकाव कम होने की आशा जगी, अंदर गया तो कोई मूर्ति नही थी तीन शीशे थे जिन पर क्रमश " सो अहम, ततवमअसि, अहम ब्रहमोस्मि"  मै वही हुँ , उसका अंश हुँ, मै ब्रह्म हुँ, मै ही ब्रह्म हुँ तो फिर किससे मिलने के लिये भटक रहा हुँ किसके लिये शरीर  त्यागना है फिर कौन माता कौन पिता सब कुछ ब्रह्म ही है फिर तुलसीदास जी ऐसा क्यो लिखते कि इन सबको छोड कर भगवान की शरन मे जाये ,मतलब साफ साफ समझ मे आने लगा था कि सब मे मै ही हुँ,सब मे मै ही तो फिर मोह किस बात का जैसा मै वैसे ही वे सब, शायद जीना आने लगा था, फिर मेरे गुरूदेव परमपूज्य वैध जी बाबा जी भालचंद्र जी ने बहुत ही सरल भासा मे बताया कि " ये दुराशा है कि कोई साथ देगा ,गिरते हुये को कोई हाथ देगा,"अर्थात जो कोई मनुस्य यह आशा करता है कि मेरे कर्मो के फल मे मेरा कोई साथ देगा तो यह दुराशा है",बस यह भाव मन मे रख कि मेरे ब्रह्म मेरे ही नही सब के दिल मे है और जीये जा जिंदगी......"