Saturday 19 November 2016

मन में उमंग है

मन में उमंग है मेरे, कोई है ,जो जगत को चला रहा है।
मुझ जैसे पाखंडी को , पल पल कैसे सजा रहा है ।।
मन को छूने वाली सच्ची बाते, मुझको कह रहा है ।
अहंकार को कर परास्त , आज मुझे समझा रहा है।।

मै तो कितना बदल गया,किस तरह जीवन जी रहा हूँ ।
अपने पराये का भेद न था,सब अपना ही कह रहा हूँ।।

मैने बहुतो को दुःख दिया है , माटी पलीद करता रहा हूँ।
गुस्से का सैलाब उमड़ता था, जिंदगी घसीट ता रहा हूँ।।
आज लगता है सब गलत किया , क्यों किया पता नही।
उसकी एक नजर पड़ी तो , मै कही पर भी टीका नही।

वह बलवान, मै नादान, जीवन गवां के पूछ रहा हूँ ।
मै तो कितना बदल गया, किस तरह जीवन जी रहा हूँ।।

सुहाता था क्या ? मुझे, कोई आँख उठाके तो देखले ।
जुबान खींच लू उसकी ,गर कोई कह कर तो देखले ।।
काम, क्रोध, मद लोभ ,नरक से सब मुझमें साकार थे ।
एक पल भी सुख़ी ना था, चाहने वाले बड़े लाचार थे ।।

उसने सिखाया जीवन क्या है,अब उसकोे  पूज रहा हूँ।
मै तो कितना बदल गया, किस तरह जीवन जी रहा हूँ।।

वो कौन है कैसा है किसने उसे देखा है,कोई तो बता दे ।
उससे मिलकर जीवन,क्यों सँवरता है ,कोई तो बता दे।।
मिला नही अब तलक, पर खोजकर रहूँगा एक दिन।
मिलेगा मुझको विश्वास है, दुनिया कहा है उसके बिन।।

अब उमंग है तरंग है , मै बदला बदला सा जी रहा हूँ।
मै कितना बदल गया ,किस तरह जीवन  जी रहा हूँ।।

हिलोरे उठ रही है , प्रेम की कोई धार सी निकल रही है।
तब सिर्फ "वेद" था ,अब दुनियां "प्रकाश"  कह रही है।।
कभी ज्ञान नही था , अब ज्ञानपुंज सा चमक रहा हूँ।
मेरे प्रभु अब तेरी शरण में , मै ये जीवन जी रहा हु।।

कोई तो समझो मेरा चिंतन , क्या मैं कही बहक रहा हूँ।
मै कितना बदल गया,किस तरह जीवन जी रहा हूँ।।

डॉ वेदप्रकाश कौशिक

Tuesday 8 November 2016

मैं अच्छा हूँ या बुरा हूँ ?

मै अच्छा हूँ या बुरा हूँ, मुझे पता नही।
कुछ लोग मुझपे मरते है,कुछ मारने को तैयार है।।

कहते है कुछ लोग , भला इंसान है "वेद" ।
कुछ लोगो की आंखो में जलन होती है मुझे देखकर ।।

लोग मिलने को तरसते है , मिलने आते है बार बार ।
किसी से जब मैं मिलता हूँ, तो मुँह फेर लेते है ।।

कहते है कुछ लोग , बहुत धार्मिक है "वेद प्रकाश"।
किसी किसी को मेरी पूजा , लगती  है बकवास ।।

किसी को लगता है , मेरा स्वभाव सहयोगी है ।
कुछ तो मुझे विखंडन का , पर्याय कहते है ।।

मेरे काम की तारीफ़ होती है, कभी कभी ।
कभी कभी मुझपे , उलाहनों की बरसात होती है ।।

मेरा चरित्र चारों तरफ मेरी चर्चा करवाता है।
कोई चरित्र "वान" कहते है, तो कभी कोई हीन कहता है।।

जिसको जैसा देखना है , देखले जी भर कर।
मैं बचपन से आज तक, जैसा था वैसा ही हूँ मगर ।।


Monday 5 September 2016

मै बदलना चाहता हुँ ...!!!!

मै बदलना चाहता हुँ ...!!!!

आज मुझे मेरे अंदर एक बदलाव करने की तलब सी लग रही है मै चाहता हुँ कि मै बदलाव करू जो कुछ दुनियाँ मे हो रहा है उसे बदल कर एक नही दुनियाँ बना दुँ बहुत कोशीश करता फिरता हुँ मेरे अन्दर एक अपरिचित सी छाया फैल रही है मेरी काया मेरे बस मे  नही है यह सब क्या हो रहा है पुरी दुनियाँ एक दुसरे लोगो की दुश्मन होती जा रही है हर हर करके घर घर बनाने वाले अब सब कुछ जुमला बता रहे है पुरा तंत्र खराब हो रहा है चारो तरफ हा हा कार मचा है कोई आतंकवाद से पीडित है कोई भ्रष्टाचार से परेशान है कोई बेरोजगारी से त्रस्त है कोई बिमारी से ग्रस्त  है, अब तो लोग मूल भूत आवश्कताओ के लिये तरस रहे है पानी तक नही मिल रहा है लोगो को,भोजन के लिये भटक रहे है क्यो ये सब हो रहा है यह सब अपने देश की ही नही इस पुरी  दुनिया की भ्रष्ट व्यवस्था के कारण हो रहा है या यहाँ के लोग परस्पर ही भ्रष्ट हो गये है कुछ भी समझ मे नही आ रहा है मै तो चाहता हुँ सब कुछ बदल दुँ एक नई दुनिया बसा दुँ लोग उस दुनिया मे खुसी खुसी रहे और आनंद से जीवन व्यतीत करे लेकिन यह सब कैसे संभव हो सकता है अकेला चना क्या भाड फोड सकता है,

मै इस सोच मे डुबा हुआ विचार कर ही रहा था कि मेरे परम मित्र श्रीमान बल्डुजी महाराज आ गये,बोले – भक्त ! वेदप्रकाश ! किस उलझन मे पडे हो बेटा ?, मै ने अपनी सारी पीडा बता दी कहा – प्रभु ! मै इस दुनिया को बदलना चाहता हुँ इसे मेरे अनुकूल बनाना चाहता हुँ कोई उपाय हो तो बताये ? , बल्डु जी ने तो जैसे मेरे जबाव का उत्तर जेब मे ही डाल रखा हो झट से एक चस्मा जेब से निकाला और बोले – ले भक्त ये आंखो पर लगा ले, मै ने वह चस्मा आंखो पर लगाया तो सब कुछ हरा हरा ही दिखने लगा, मै ने कहा – महाराज  सब कुछ सावन के अंधे की तरह हरा ही हरा दिखाई दे रहा है इसका क्या मतलब है, मेरे मित्र बल्डु जी महाराज ने बडे ही अदब से बताया कि – डाक्टर साब कुछ भी समझ मे नही आया या जानबूझ कर अनजान बन रहे हो ? , अब अनजान बन ही रहे हो तो बता देता हुँ कि यह चस्मा ही है जो दुनियाँ को अपने अपने हिसाब से देखने के लिये लोगो ने आंखो के आगे लगा रखा है बस चस्मा हटा दो तो दुनियाँ तो बहुत ही सुंदर है सब कुछ व्यवस्थित है आपको यदि बदलना ही है तो दृष्टि को बदलो स्रष्टि को बदलने की कोशीश मत करो,

मै ने पुछा – यार बल्डु यह सब तेरे जैसे झाहिल गंवार आदमी के दिमाग मे कहाँ से आ जाती है ये बाते, तुझे ये सब कौन बताता है? बल्डु ने फिर अपनी जेब मे हाथ डाला मै ने बीच मे ही टोक दिया – ये सारी समस्याओ का हल तु जेब मे ही लिये फिरता है क्या?  वह  थोडा मुस्कराया और बहुत ही आदर और गम्भीर शब्दो मे बोला – मेरी जेब मे  तेरी समस्याओ का हल ही नही पुरी दुनिया की समस्याओ का समाधान भरा पडा है, और देख यह है श्री श्री 1008 श्री बाबा ऐंड्रायड मोबाईल मुनि जी, ये महाराज जी बोलते नही है इसमे ऐसे ऐसे सेवक काम करते है जो सभी समस्याओ का हल लिये आपकी सेवा मे आपको मिल जाते है जैसे वाट्सअप फेसबुक हाईक... पता नही क्या क्या है एक तो गुगल मुनि है उनसे तो आप कुछ भी पुछो बाबा एक के बदले दस बताते है, बस इस झाहिल और गंवार की विद्ध्वता का राज यही है ये ही सुबह से लेकर शाम तक हजारो प्रकार के देशी दवा के नुस्खे से लेकर महाव्याधि तक के उपचार बताते है ये ही तरह तरह के ज्ञान की बाते  बताते है बिना बोले आपको सब दिखा देंगे मंगला आरती से लेकर शयन आरती तक सब के दर्शन इसमे हो जाते है, 

वह बोले जा रहा था एक से बढकर एक गुणो का बखान कर रहा था, मै चुपचाप सुन रहा था उसकी कथा चल रही थी वह फिर से बोला – देख कौशिक ! इसमे तु भगवान के भजन,रामचरित मानस की चौपाई,गीता के श्लोक कुछ भी सुन सकता है लोगोको सुना सकताहै, और तो और तु फेसबुक पर किसी भी प्रकार की भडास निकाल सकता है और तो और वाट्सअप पर ग्रूप बना कर किसी भी प्रकार की राजनीति कर सकता है बिना गला फाडे तु चिल्ला सकता है

अब मेरे सब कुछ समझ मे आ रहा था मुझे लग रहा था कि खुद को बदलने का विचार त्याग कर मुझे अभी तो मेरा मोबाईल बदल लेना चाहिये  


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Thursday 2 June 2016

अंधेरा घिर आने से पुर्व---

       जब भी मेरे मन मे निराशा का भाव आता है मै हमेशा इस कविता को पढता हुँ, इसके अंदर छुपे गहरे आध्यात्मिक भावो को महशूस करता हुँ ,जिससे मुझे बहुत ही शकून मिलता है और मन मे एक उत्साह का आभास होने लगता है, मेरे पिताजी की लिखी कविताओ मे से यह एक बहुत ही प्रेरणादायक कविता है, यह कविता "गायत्री उपवन" नामक मासिक पत्रिका मे छप चुकी है,

        मेरे पास संग्रह के रूप मे रखी हुई थी,इस प्रेरणादायक कविता से आप भी प्रेरणा ले और जीवन को सुखद और आनंद दायक बनाये...

 अंधेरा घिर आने से पुर्व-----

अंधेरा घिर आने से पुर्व प्रवज्वलित दीप करे तैयार
भला फिर क्योहोंगे ,भयभीत प्रकाशित होंगे जब सब द्वार

स्वप्नवत है सारा संसार, यहाँ के मिथ्या सब व्यापार
सभी को रहना दिन दो चार अंत मे जाना हो लाचार
मृत्यु के आघातो से पुर्व करेंगे प्राणो का उपचार
भला फिर क्यो होंगे संतृस्त शक्ति युक्त होंगे जब आधार
अंधेरा घिर आने से पुर्व .....

अनय का भीषण झंझावात, कर रहा जन मन पर आघात
मनुजता हो बैठी उद्द्यंड, भौतकी धारा हूई प्रचंड
भंवर मे फंस जाने से पुर्व, करेंगे बेडे का उद्धार
भला फिर क्यो होंगे क्षति ग्रस्त, नदी को कर लेंगे जब पार
अंधेरा घिर आने से पुर्व ........

देखकर हमको युँ सन्नद्ध, विघ्न भी हुये श्रंखला बद्ध
किंतु हम निर्भय होकर चले, शांति के कुंजो बीच पले
समर मे सो जाने से पुर्व करेंगे रिपुपर प्रबल प्रहार
भला क्यो होगी अपकीर्ति जब मनाये नित्य मरण त्यौहार
अंधेरा घिर आने से पुर्व ......

  लेखक-- वैद्य श्रीमालचंद्र जी कौशिक "वैद्यजी बाबाजी" 

Sunday 22 May 2016

भाई बडा या दोस्त ???

भाई बडा या दोस्त ???

आज मेरा मन बहुत ही विचलित हो गया है कि समाज मे ये सब क्या हो रहा है एक मेसेज आजकल वायरल हो रहा है कि “सगे भाई से बोल-चाल बंद है और फेसबुक पर पांच हजार दोस्त है, भाई से बोलने मे शर्म महसुश होती है और दोस्तो के साथ रोज पार्टी हो रही है,”  समाज मे यह एक मामूली सी बात लगती है लेकिन क्या यह सब सच मे ही मामुली सी बात है,? मेरा मन आज बार बार एक ही बात पर टिक रहा है कि भाई बडा है या दोस्त ???

 मै एक बहुत ही आध्यात्मिक टाईप का विद्ध्यार्थी रहा हुँ और मेरा मानना है कि शास्त्र जितने प्रामाणिक है उतने प्रामाणिक इस संसार मे और कुछ नही है भारत के मनिषियो का लोहा तो विदेशी लोग भी मानते है हमारे देश की समाज व्यवस्था तो सभी देशो को लुभाती है लेकिन हम कहा जा रहे है कुछ समझ मे नही आ रहा है,

शास्त्रो मे मित्र की परिभाषा भी लिखी गई है तो भाई का भी गुणगान किया  गया है, हमारे देश मे सबसे बडे आदर्श भगवान श्रीराम जी और भगवान श्रीकृष्ण जी ने भी अपने भाईयो के साथ मिलकर ही दुश्मनो पर विजय प्राप्त की है भगवान श्रीराम अपने भाईयो भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न सहित समाज मे भाई चारे की एक बहुत ही बडी मिशाल थे,

शास्त्रो मे लिखा है कि सच्चा दोस्त वह होता है-

“पापानिवारयति योजते हिताय, गुय्हम निगुय्हति गुणान प्रकटि करोति,
आपदगन्तम च न जहाति ददाति काले, सन्मित्रम लक्षणमिदम प्रवदंति विज्ञा,” 

अर्थात- जो अपने मित्र को पाप के मार्गपर जाने से रोकता है,सन्मार्ग की ओर प्रेरित करता है, दोस्त की गुप्त बातो को छिपाता है और गुणो का बखान करता है,आपत्ति के समय नही छोडता है अर्थात आपत्ति मे साथ देता है अच्छे मित्र की यह पहचान विद्ध्वानो ने बताई है,”

आजकल के कथित मित्र क्या सच मे ऐसे है ? जहाँ  तक मेरा  मानना है आजकल के अधिकतम मित्र इस परिभाषा के बिल्कुल विपरीत है,पाप के मार्ग पर यदि पहली बार कोई ले गया होगा [जैसे शराब पीने के लिये,सिगरेट पिलाने के लिये, किसी अश्लील क्रियाकलापो मे] तो वह मित्र ही होगा, सन्मार्ग पर [जैसे भजन कीर्तन मे जाने से,प्रातःकाल घूमने जाने से] जाने से रोकने वाला कोई पहला व्यक्ति  होगा तो वह आजकल का कथित मित्र ही रहा होगा, अपने मन की कोई गुप्त बात यदि दोस्त को बता दी तो उसे सभी को बताने का काम किया होगा तो इस कथित दोस्त ने ही किया होगा, और गुणो का बखान तो दूर की बात है यदि किसी काम मे यदि दोस्त की बुराई करने से काम बन रहा है तो दोस्त का पुरा कच्चा चिठ्ठा खोल कर रखने वाला दोस्त ही होगा, यह कथित दोस्त तो सब जगह मिल जायेंगे लेकिन आजकल सच्चा दोस्त मिलना बहुत ही मुश्किल है

अब रही बात भाई की तो “भाई भाई लडे भले ही टुट सका क्या नाता – जय जय भारत माता” इस प्रकार की कविताये हम बचपन से पढते आये है भाई तो भाई ही होता है भाई को सहोदर भी कहा जाता है जो एक ही उदर से पैदा होते है उनमे भिन्नता होते हुये भी समानता तो जरूर होती है मन से हम भाई के दुश्मन भी बन जाये लेकिन हमारी आत्मा यह कभी भी बर्दास्त नही करेगी, भाई के लिये दिल पसीज ही जाता है इस बात के शास्त्रो मे भी उदाहरण मिलते है महाभारत और रामायन जैसे हिंदुओ के धार्मिक ग्रंथो मे कई प्रसंग आते है जिसमे यह बताने  की कोशीश की गई है कि कलयुग मे भाई का क्या महत्व है और दोस्त का क्या ?

रामचरित मानस मे गोस्वामी तुलसी दास जी लिखते है जब पता चल गया कि सीता मैया रावण के पास है और सब लोग समुद्र किनारे आ गये और समुद्र पार करने का प्रयास कर रहे थे रावण के भाई विभिषण ने अपने मित्र रामजी को एक नेक सलाह दी कि – समुद्र आपके पुर्वज है अतः आप प्रार्थना करे कि वह हमे रास्ता दे दे, लेकिन यह बात लक्ष्मण जी को पसंद नही आई,

जो अपना होता है उसे किसी दुसरे की गलत सलाह पर क्रोध आ जाता है लक्ष्मण जी तो भाई थे विभिषण की सलाह पर उन्हे भयंकर क्रोध आ गया,लक्ष्मण जी बोले- यह देव ! देव ! का आलाप करना इस समय उचित नही है आप कायरो की तरह काम ना करे और इसी समय समुंद्र को सौखने का काम करे, लेकिन राम जी ने मर्यादित मुस्कान के साथ अपने मित्र की बात को ना टालते हुये लक्ष्मणजी को समझाया, तब तुलसीदास जी लिखते है – “सुनत बिहसि बोले रघुवीरा, ऐसेहि करब  धरहु  मन धीरा”

 हे मेरे प्रिय  भाई ! तुम कह रहे हो मै वैसा ही करुंगा,बस थोडी देर मन मे धीरज को धारण करो, यह बहुत ही गहराई की बात है भगवानको मालूम था कि यह सब लक्ष्मण कह रहा है वैसे ही होने वाला है लेकिन भाई की बात पर क्रोध ना करते हुये उसे समझा दिया लेकिन आजकल यह नही होता जबकि इसके विपरीत ही होता है भाई कुछ सलाह दे दे और वह भी क्रोध मे हो तो फिर मानना तो दूर भाई से उस दिन के बाद सम्बंध विच्छेद हो जाता है

ऐसा ही एक प्रसंग  और आता है जब लक्ष्मण जी के शक्ति  बाण लग जाता है और रामजी मनुष्य की तरह  विलाप कर रहे उस समय तुलसी दास जी लिखते है –

“सुत वित्त नारि भवन परिवारा, होहि जाहि जग बारहि बारा
अस विचारि जियँ जागहु ताता,मिलई न जगत सहोदर भ्राता”

अर्थात इस संसार मे बेटा, धन, पत्नि, भवन, और परिवार यह सब बार बार मिल सकते है लेकिन जीवन मे सगा भाई बार बार नही मिलता ऐसा विचार करके मेरे भाई तुम जाग जाओ

यह सब उस भाई की बात है जो अपने भाई की सलाह को मानता है और एक दुसरे मे प्रेम होता है और इसी प्रसंग मे रावण और कुम्भकरण का भी जिक्र किया गया है लेकिन रावन अपने भाईयो की सलाह नही मानता जिसके लिये लिखा है, जब कुम्भकरण को पता चलता है कि रावण सीतामैया का हरण करके ले आया है और अब युद्ध जीतने की सोच रहा है तब सलाह दी थी,“जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान” 

जब भाई भाई से अलग हो जाता है या यह कहे जब भाई भाई को लात मार कर भगा देता है तब भाई आयु हीन हो जाते है “ अस कही चला विभीषण जबहि आयुहीन भये सब तबहि” ऐसे बहुत उदाहरण है जो यह सिखाते है कि जो अपने भाईयो की बात मानता है अपने परिवार से मेलजोल रखता है वह निश्चित ही जीवन मे सफल होता है और जो नही मानता वह बर्बाद हो जाता है,

महाभारत मे भी कई ऐसे प्रसंग मिलते है जिसमे भाई का जिक्र आते ही मित्रता फीकी पड जाती है जब कर्ण को पता चल जाता है कि पान्डव मेरे भाई है और कुंती माता है तो उसने भी अपने बहुत अच्छे दोस्त के साथ धोखा कर दिया और अपनी माता को वचन दे दिया कि तेरे बेटे पांच जीवित रहेंगे, यहाँ बात वचन की नही भाई के प्रति प्रेम की है, जब सगा भाई पीडा मे होता है दुःख जरूर होता है,

भाई और दोस्त मे एक लक्ष्मण  रेखा होनी चाहिये भाई भाई होता है और दोस्त दोस्त होता है मेरी नजर मे भाई का  स्थान सदैव दोस्त से ऊंचा ही होता है जब यह बात सभी के समझ मे आ जायेगी तो यह जीवन बहुत ही सुंदर हो जायेगा

      
    

Thursday 14 April 2016

समझो सबमे साँई है

  आज मेरे मन मे यह भाव आया कि लोग क्यो अपने ऊंचेपन का घमंड करते है यह गर्व उन्हे पतन की ओर ले जाता है यह कविता आभाष दिलाती है कि हम चाहे कितने ही ऊंचे हो जाये लेकिन एक दिन धरातल पर जरूर आ जायेंगे, आज मेरे मन के भाव मे पढे मेरे परम पुज्य पिताजी की यह कविता ......    

ऊँचे पन का गर्व ना करना ,ऊँच नीच अस्थाई है
समता की महिमा संतो ने सबसे बडी बताई है

ऊँचे सुरज को प्रतिदिन ही , ढलता हुआ देखते है
वृक्ष बने छोटे अंकुर को, फलता हुआ देखते है
ऊँचे ऊँचे हिमखंडो को, गलता हुआ देखते है
सुक्ष्म चेतना के बल जड को, चलता हुआ देखते है
अणु मे वही विराट छुपा है , देता विश्व दिखाई है
ऊँचे पन का गर्व ना करना, ऊँच नीच अस्थाई है

बडे बडे धनवान धरा पर भिक्षुक बनते देखे है
रंक बने भुपाल भूमी पर, इतिहासो मे लेखे है
मुर्ख बने विद्ध्वान यहाँ पर, विद्ध्वानो की हंसी उडी
महानगर विद्ध्वस्त हो गये , जंगल मे है भीड जुटी
बिना आत्म चिन्तन के , शांति ना मिलने पाई है
ऊंचे पन का गर्व ना करना, ऊंच नीच अस्थाई है

भूख प्यास सबको लगती सब रोते हंसते आये
सोते जगते है सब प्राणी, जन्म लिया मरते आये
राग द्वेष की घोर घटाये, संघर्षो को बरसाती
यही प्यार की गंगा बहकर, सबको शीतल कर जाती
द्वंद मुक्त को रोक ना पाती, ऊंच नीच की खाई है
ऊंचे पन का गर्व ना करना ऊंच नीच अस्थाई है

अहम पुष्ट करने की खातिर, छल छदमो को अपनाते
बडे बडे पदवी धारी, निज कर्मजाल मे फंस जाते
स्वार्थत्याग –परमार्थ पथिक बन, जो जन आगे बढ जाते
उनकी महिमा का बखान कर, बुद्ध जन उनके गुण गाते
हो व्यवहार भेद बेशक, पर समझो  सबमे साँई है
ऊंचे पन का गर्व ना करना ऊंच नीच अस्थाई है

 परम आदरणीय श्री वैद्ध्य मालचंद्र जी कौशिक  की लिखित यह कविता एक बहुत ही बडा संदेश देती है मुझे मेरे पिताजी की कविताये बहुत ही प्रभावित करती है तथा मार्गदर्शन भी करती है मुझे इस कविता को पढने के बाद यह आभास हुआ कि सच मे ही ऊंचापन अस्थाई है,मेरे पिताजी मेरे गुरू जी भी है,  मेरे अलावा उनके बहुत शिष्य है उन सभी के लिये उनके द्वारा लिखे यह अनुभव मै शेयर करता रहुंगा, आप भी पढे और अपने इष्ट मित्रो को भी पढाये ,

Wednesday 13 April 2016

पंछी उडने को है ....


         मेरे बच्चे  ने अभी सोलह सावन ही पुरे किये है और सत्रवे मे बैठते ही उसने घर से दूर रह कर पढने की इच्छा मुझसे व्यक्त की तो मेरे मन मे उमंग की लहरे छा गई, किसी किसी को तो जबर्दस्ती बाहर भेजना पडता है जबकि मेरा बच्चा खुद ही मुझे बोल रहा था, मुझे गर्व है मेरे बच्चो पर दोनो ही बहुत ही समझदार है और निर्णय लेने मे भी पुर्ण समर्थ है, बच्चा तो हर काम सीखने मे बहुत ही तेज है अपनी छोटी बहिन से भी कुछ सीखना हो तो हिचकता नही है जब मै ने उसे बताया कि” –बेटा जब बाहर जायेगा तो खाना बनाना, बाईक चलाना, कपडे धोना अपना काम खुद करना सब आना चाहिये वहाँ पर तेरे साथ मे मम्मी पापा नही होंगे सब निर्णय खुद ही लेने होंगे और परिस्थितिया भी हमेशा अनुकूल रहे, ऐसा नही होता है,  बेटा ! खुस रहने के दो ही उपाय है, आवश्यकताये कम रखे और परिस्थितियो से ताल मेल बैठाये यदि तुम यह सब कर सकते हो तो फिर तुम बाहर रह कर पढने मे सक्षम हो ” 

         मेरे इतना कहने के बाद सब काम सीखने मे उसकी दिलचस्पी देख कर मुझे यकीन हो चला था कि अब पंछी उडने की तैयारी मे है और जब पंछी सच मे दिल से उडने की तैयारी मे हो तो उसके उडने की तैयारी पुरी खुसी और उमंग से करनी चाहिये,

         लेकिन माँ तो माँ ही होती है बेटा कितना ही बडा हो जाये वह उसे हमेशा बच्चा ही समझती है उसके मन मे  भय सा छा गया,वह सोचने लगी कि कैसे अकेला रह पायेगा तो बच्चे ने एक महिना छात्रावास मे बिताया और यह विस्वास दिलाया कि जब कोई कुछ करने की ठान लेता है तो कर ही गुजरता है मुझे मेरे परम पुज्य पिता जी कहते थे – बेटा जो जैसा सोचता है और करता है वह वैसा ही बन जाता है यही बात मै मेरे बच्चे से भी कहना चाहता हुँ लेकिन मुझे लगता है आजकल के बच्चे हमारे वक्त के बच्चो से एड्वांस तो है ही, लेकिन फिर भी माता- पिता का कर्तव्य होता है कि कुछ बाते तो बच्चो को सीखानी ही चाहिये

        प्रसिद्ध साईंटिस्ट अलबर्ट आईंसटीन लिखते है – “विज्ञान  अध्यात्म के बिना अंधा है और अध्यात्म विज्ञान के बिना  लंगडा है मै जब आज से करीब चौबीस वर्ष पहले कोचिंग करने जयपुर गया था तो मुझे मेरे पिताजी ने गायत्री चालिसा देते हुये कहा – “बेटा यह माँ गायत्री का चालिसा है इसे रोजाना एक बार तो अवश्य ही पढना मन  शांत रहेगा” जब मन शांत रहता है तो सब कुछ अच्छा अच्छा लगता है आज की भाषा मे बोले तो मन पोजिटिव रहता है, मै भी मेरे बच्चो को यह बताना चाहता हुँ कि पढाई के साथ साथ थोडा आध्यात्मिक भी होना चाहिये,क्योकि सफलता प्राप्त करने के लिये पोजिटिव रहना बहुत ही जरूरी है, जब उडना है तो हौंसला भी होना ही चाहिये,

        जब उडने वाली बात हो तो हनुमान जी से ज्यादा उडने वाला कौन हो सकता है लेकिन हम जब आगे बढने को होते है तो हमे यह कदापि आभास नही रहता कि बहुत लोग हमसे पिछे छुटते जा रहे है जब कोई पिछे रह जाता है तो वह मन से बडा ही दुखी होता है कुछ लोग जीवन मे ऐसे भी मिलते है जो हमारी परीक्षा लेना चाहते है कुछ बहुत ही प्रतिस्पर्धा रखते है कई लोग तो बहुत ही खतरनाक तरीके से छुप कर घात पहुचाते है, मै मेरे बच्चो को डरा नही रहा हुँ, बल्कि उन्हे आगाह कर रहा हुँ कि दुनिया मे सब कुछ अपने अनुकूल ही हो ऐसा नही होता है  इसलिये कुछ बाते धार्मिक ग्रंथो से भी ग्रहण कर लेनी चाहिये, 

        यह बात बताने के लिये मैं ने बच्चो को एकबार सुंदरकांड की कुछ घटनाये जीवन से जोड कर बताई थी मुझे विश्वास है उन्हे अवश्य ही याद होंगी फिर भी मै एक बार मेरे बच्चो को नही सभी बच्चो को बताना चाहता हुँ कि जब हम उडने की तैयारी करे तो हमेशा पोजिटिव रहे पोजिटिव का मतलब अपनी क्षमता और अपने लक्ष्य को कभी ना भुले जैसे हनुमान जी कहते है “राम काज किन्हे बिनु मोहे कहाँ विश्राम”  जब जामवंत जी ने हनुमान जी को बल याद दिला दिया तब हनुमान जी अपना बल याद करके चल पडे तो उनके साथ नौ  घटनाये घटती है,जिन्हे मै यहाँ पर प्रासंगिक समझता हुँ, क्योकि सीता माता का पता लगाने के लिये की गई उडान भी मंजिल पाने की उडान से कम नही थी,

        पहली घटना – सुमेरू पर्वत का मिलना, जो कि हमे यह सिखाती है कि आराम करने मौज मस्ती करने  के कई साधन मिलेंगे लेकिन जब तक लक्ष्य प्राप्तनही हो ऐसे मौज मस्ती से दूर ही रहना सही है ऐसी मौज मस्ती को नमन करते हुये शमन करे दमन नही ,

         दुसरी घटना  – सुरसा का मिलना, यह संदेश है कि बहुत ही कम्पिटिशन है और कम्पिटिशन करना भी है लेकिन यदि प्रतिस्पर्धा बहुत ही नाजुक हो जाये तो   और अपने लक्ष्य मे बाधा बन रही है तथा मानसिक परेशानी पैदा कर रही हो  तो हार मान कर उसको छोड कर मन को अपने लक्ष्य मे ही लगाओ, जब जब सुरसा बदनु बढावा तासु दून कपि रूप दिखावा, शत जोजन जेहि आनन किन्हा अति लघु रूप पवन सुत लिन्हा” छोटा बनने मे कोई बुराई नही है बस सोच हमेशा बडी रहनी चाहिये,
 
        तीसरी घटना  – छाया देख कर खा जाने वाली राक्षसी का मिलना, यह घटना हमे सचेत करती है कि छुप कर धोखा करने वालो से सतर्क रहनाचाहिये और उन्हे छोड ही देना चाहिये

        चौथी घटना - सुंदर सुशोभित लंका दिखाई देना,यह है मंजिल की जगह जो हमे दिखाई तो दे रही है लेकिन बहुत ही  पहरो के अंदर है चारो तरफ पहरेदार लगे है,बहुत ही सुंदर है मोहित करने वाली है,"वन बाग उपवन वाटिका शर कूप वापि सोहहि, नर नाग सुर गंधर्व कन्या रूप मुनि मन मोहहि" इस मंजिल पाने के स्थान पर मौज मस्ती के सब साधन होते है हर प्रकार की सामग्री है मन को भ्रमित करने के लिये, बहुत से पहरे लगे है इसके भीतर घुसना बहुत ही कठिन है लेकिन नामुमकिन नही है,

       पांचवी घटना – मच्छर का रूप बनाना यह बताती है कि छोटा बन कर रहो लोग आपकी प्रतिभा को अपने आप पहचान लेंगे आप अपने मुँह मिठू मत बनो, मौज मस्ती का शमन करो अपने आपको जानने की कोशीश करनी चाहिये

        छठी घटना – लंकीनी का मिलना- मच्छर के समान रूप धारण करने पर भी कुछ लोग मंजिलकी तरफ बढते कदम रोक देते है तब उनका मुकाबला पुर्ण ताकत से करना चाहिये

        सातवी घटना- विभीषण का मिलना,जब हम बहुत ही सरल और सामान्य व्यवहार रखते है तो हमे अपनी मंजिल बताने वाले माईल स्टोन मिलने लगते है,
   
        आठवी घटना – सीता का मिलना बस यही तो है मंजिल मिल ही गई समझो लेकिन बाधा अभी भी आ सकती है लेकिन जब पोजिटिव सोच रहती है अर्थात राम जब साथ होते है तो कुछ भी असम्भव नही होता है अंग्रेजी मे एक कहावत है - everything is possible if god touch is there.
 
        नवी घटना – लंका को जलाना, मतलब सभी बाधाये चीर कर मंजिल प्राप्त कर लेना,


        मेरे  बच्चो ! जब मंजिल मिल जाती है और हम जब अपने लोगो के पास वापिस खुसी मनाते हुये आते है और फिर जो आनंद की अनुभूती होती है उसे बयान करना बहुत ही मुश्किल है

       हम कितने ही अच्छे हो लेकिन समय और परिस्थिती कब और कैसे बदल जाये इसे कोई नही जान सकता, मेरे बच्चो मै तुन्हे कोई बंधन मे नही डाल रहा हुँ, कि पुजा पाठ मे ही लिप्त रहो लेकिन सदैव अपने आपको याद रखो, खुद को जानो और खुद से सिखो, मेरे बच्चे को मैने एक ही बात कही है – “ बेटा ! किसी के लिये तुझे पढने की जरूरत नही है बस अपने लिये ही पढना.. फिर  तुझे  इस  गगन मे इस आकाश  मे स्वछंद उडने  से  कोई  भी  नही रोक  सकता.

Tuesday 12 January 2016

उठो,जागो,रुको मत ........

उठो,जागो,रुको मत ........

         “उठो, जागो, रुको मत, जब तक लक्ष्य तक ना पहुँच जाओ...” यह एक ध्येय वाक्य है स्वामी विवेकानंद जी का, इन चार शब्दो मे पुरा जीवन रहस्य छुपा हुआ है, हम आज एक एक शब्द को जब परिभाषित करेंगे तो हमे यह पता चलेगा कि इन चार शब्दो मे स्वामी जी किस प्रकार पुरा जीवन का सार भर दिया है,


          1. उठो --- इस शब्द मे एक सामान्य सी बात लगती है बस उठो, लेकिन कैसा उठना क्या अपने स्थान से उठकर चलना ही उठना है, नही आप लोगो को याद होगा कि जब लोग कहते है कि “पैरो पर खडे होकर दिखलाओ तो जमाना तुम्हारा है,” कई लोगो को कहते हुये सुनते है कि वह तो अपने पैरो पर खडा हो गया, मतलब कमाई करने लग गया, अब इसी बात को मै कहता हुँ कि उठो का मतलब अपने आप पर निर्भर होना, स्वावलंबी होना, हम जब खुद का काम खुद करने लग जाये किसी और पर निर्भर ना रहे तो इसका मतलब हम उठ गये है, कहते है “पराधीन सपनेहुँ सुख नाही” स्वामी जी का पहला जीवन विज्ञान यही है हम अपने पैरो पर खडे होकर आत्मनिर्भर हो जाये, अपने स्तर को ऊँचा करले,


           2. जागो --- इसका अर्थ है अपने आप को पहचानना, जब मनुष्य अपने आप को जान जाता है आत्म ज्ञान हो जाता है तो उसे जीवन जीने का लक्ष्य मिल जाता है मकसदमिलने के बाद सब काम छोड लगन लग जाती है “ आज आपके दिलो मे उमड रहा अनुराग, फिर से जाग रे कबिरा जाग” जैसे कबीर जी जाग गये, मीरा बाई जाग गई,”ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन” जब किसी काम की लगन लग जाती है मन मगन हो जाताहै,  जैसे हनुमानजी को जागृति हो गई, तुलसी दास जी लिखते हैकि जब हनुमान जी जामवंत जी ने कहा-  “राम काज लगि तव अवतारा, सुनतहि भयहुँ पर्वता कारा” हनुमान  जी को जब पता चल गया कि मेरा जन्म किस काम के लिये हुआ है वे पर्वत के समान आकार वाले हो गये, मंजिल पाने के लिये पहले जागना पडता है “अब जाग उठो कमर कसो मंजिल की राह बुलाती है” जाग कर फिर कमर कस लो, मंजिल फिर आपका रास्ता देख रही है,आप को बुला रही है, विवेकानंद जी ने कहा- जागो.. अपने आप को पहचानो , अपना लक्ष्य तय करो, अपनी अंदर छिपी शक्तियाँ पहचानो,


           3. रुको मत – जब अपने आपको पहचान गये लक्ष्य दिखाई दे गया, अपनी अंदर छिपी शक्तियाँ हमे पता लग तब रुको मत अब चलते रहो, पुज्य पिता जी लिखते है –“चले हो अभय क्रांति नुतन मचाते,प्रफुल्लित ह्रदय से सृजन गीत गाते, फिर निडर होकर चलो और ह्रदय मे प्रशन्न्ता लेकर चलो, जब हनुमानजी को पता चल गया कि मेरा जन्म राम काज के लिये ही हुआ है तो फिर विश्राम किस बात का,जब लंका मे जा रहे थे तो समुंद्रभगवान राम जी दूत समझ कर विश्राम करने के लिये कहा लेकिन हनुमानजी ने शालीनता से मना कर दिया, तुलसी दास जी लिखते है “हनुमान तेहि परसाकर पून किन्ही प्रणाम, राम काज किन्हे बिनू मोहे कहा विश्राम” स्वामीजी ने भी यही कहा है,  मंजिल पाने के लिये अनवरत परिश्रम करते रहो, रुको मत ....


            4. मंजिल प्राप्त हो जाये तब तक --  मंजिल मिलना और मंजिल पाना, दोनो अलग अलग बाते है, मंजिले मिल जाती है राह चलते चलते,और मंजिले पाई जाती है कमर कस मेहनत से, जब मेहनती हो गये तो हमे जीना आ गया, जीवन का मतलब समझ मे आ गया,


             
             

            आज स्वामी विवेकानंद जी की जयंति है, उन्होने जो कहा वह मै ने समझा और मै ने जो लिखा वह आप लोगो को कितना समझ मे आया आप लोगो के कमेंटस से ही पता चलेगा, आप भी आज उस महान विभूति को एक बार अवस्य याद करना और उनकी तरह स्वस्थ शरीर और प्रशन्न मन युक्त जीवन जीने की कौशीश करना, उठो, जागो, रुको मत .......