Sunday 22 May 2016

भाई बडा या दोस्त ???

भाई बडा या दोस्त ???

आज मेरा मन बहुत ही विचलित हो गया है कि समाज मे ये सब क्या हो रहा है एक मेसेज आजकल वायरल हो रहा है कि “सगे भाई से बोल-चाल बंद है और फेसबुक पर पांच हजार दोस्त है, भाई से बोलने मे शर्म महसुश होती है और दोस्तो के साथ रोज पार्टी हो रही है,”  समाज मे यह एक मामूली सी बात लगती है लेकिन क्या यह सब सच मे ही मामुली सी बात है,? मेरा मन आज बार बार एक ही बात पर टिक रहा है कि भाई बडा है या दोस्त ???

 मै एक बहुत ही आध्यात्मिक टाईप का विद्ध्यार्थी रहा हुँ और मेरा मानना है कि शास्त्र जितने प्रामाणिक है उतने प्रामाणिक इस संसार मे और कुछ नही है भारत के मनिषियो का लोहा तो विदेशी लोग भी मानते है हमारे देश की समाज व्यवस्था तो सभी देशो को लुभाती है लेकिन हम कहा जा रहे है कुछ समझ मे नही आ रहा है,

शास्त्रो मे मित्र की परिभाषा भी लिखी गई है तो भाई का भी गुणगान किया  गया है, हमारे देश मे सबसे बडे आदर्श भगवान श्रीराम जी और भगवान श्रीकृष्ण जी ने भी अपने भाईयो के साथ मिलकर ही दुश्मनो पर विजय प्राप्त की है भगवान श्रीराम अपने भाईयो भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न सहित समाज मे भाई चारे की एक बहुत ही बडी मिशाल थे,

शास्त्रो मे लिखा है कि सच्चा दोस्त वह होता है-

“पापानिवारयति योजते हिताय, गुय्हम निगुय्हति गुणान प्रकटि करोति,
आपदगन्तम च न जहाति ददाति काले, सन्मित्रम लक्षणमिदम प्रवदंति विज्ञा,” 

अर्थात- जो अपने मित्र को पाप के मार्गपर जाने से रोकता है,सन्मार्ग की ओर प्रेरित करता है, दोस्त की गुप्त बातो को छिपाता है और गुणो का बखान करता है,आपत्ति के समय नही छोडता है अर्थात आपत्ति मे साथ देता है अच्छे मित्र की यह पहचान विद्ध्वानो ने बताई है,”

आजकल के कथित मित्र क्या सच मे ऐसे है ? जहाँ  तक मेरा  मानना है आजकल के अधिकतम मित्र इस परिभाषा के बिल्कुल विपरीत है,पाप के मार्ग पर यदि पहली बार कोई ले गया होगा [जैसे शराब पीने के लिये,सिगरेट पिलाने के लिये, किसी अश्लील क्रियाकलापो मे] तो वह मित्र ही होगा, सन्मार्ग पर [जैसे भजन कीर्तन मे जाने से,प्रातःकाल घूमने जाने से] जाने से रोकने वाला कोई पहला व्यक्ति  होगा तो वह आजकल का कथित मित्र ही रहा होगा, अपने मन की कोई गुप्त बात यदि दोस्त को बता दी तो उसे सभी को बताने का काम किया होगा तो इस कथित दोस्त ने ही किया होगा, और गुणो का बखान तो दूर की बात है यदि किसी काम मे यदि दोस्त की बुराई करने से काम बन रहा है तो दोस्त का पुरा कच्चा चिठ्ठा खोल कर रखने वाला दोस्त ही होगा, यह कथित दोस्त तो सब जगह मिल जायेंगे लेकिन आजकल सच्चा दोस्त मिलना बहुत ही मुश्किल है

अब रही बात भाई की तो “भाई भाई लडे भले ही टुट सका क्या नाता – जय जय भारत माता” इस प्रकार की कविताये हम बचपन से पढते आये है भाई तो भाई ही होता है भाई को सहोदर भी कहा जाता है जो एक ही उदर से पैदा होते है उनमे भिन्नता होते हुये भी समानता तो जरूर होती है मन से हम भाई के दुश्मन भी बन जाये लेकिन हमारी आत्मा यह कभी भी बर्दास्त नही करेगी, भाई के लिये दिल पसीज ही जाता है इस बात के शास्त्रो मे भी उदाहरण मिलते है महाभारत और रामायन जैसे हिंदुओ के धार्मिक ग्रंथो मे कई प्रसंग आते है जिसमे यह बताने  की कोशीश की गई है कि कलयुग मे भाई का क्या महत्व है और दोस्त का क्या ?

रामचरित मानस मे गोस्वामी तुलसी दास जी लिखते है जब पता चल गया कि सीता मैया रावण के पास है और सब लोग समुद्र किनारे आ गये और समुद्र पार करने का प्रयास कर रहे थे रावण के भाई विभिषण ने अपने मित्र रामजी को एक नेक सलाह दी कि – समुद्र आपके पुर्वज है अतः आप प्रार्थना करे कि वह हमे रास्ता दे दे, लेकिन यह बात लक्ष्मण जी को पसंद नही आई,

जो अपना होता है उसे किसी दुसरे की गलत सलाह पर क्रोध आ जाता है लक्ष्मण जी तो भाई थे विभिषण की सलाह पर उन्हे भयंकर क्रोध आ गया,लक्ष्मण जी बोले- यह देव ! देव ! का आलाप करना इस समय उचित नही है आप कायरो की तरह काम ना करे और इसी समय समुंद्र को सौखने का काम करे, लेकिन राम जी ने मर्यादित मुस्कान के साथ अपने मित्र की बात को ना टालते हुये लक्ष्मणजी को समझाया, तब तुलसीदास जी लिखते है – “सुनत बिहसि बोले रघुवीरा, ऐसेहि करब  धरहु  मन धीरा”

 हे मेरे प्रिय  भाई ! तुम कह रहे हो मै वैसा ही करुंगा,बस थोडी देर मन मे धीरज को धारण करो, यह बहुत ही गहराई की बात है भगवानको मालूम था कि यह सब लक्ष्मण कह रहा है वैसे ही होने वाला है लेकिन भाई की बात पर क्रोध ना करते हुये उसे समझा दिया लेकिन आजकल यह नही होता जबकि इसके विपरीत ही होता है भाई कुछ सलाह दे दे और वह भी क्रोध मे हो तो फिर मानना तो दूर भाई से उस दिन के बाद सम्बंध विच्छेद हो जाता है

ऐसा ही एक प्रसंग  और आता है जब लक्ष्मण जी के शक्ति  बाण लग जाता है और रामजी मनुष्य की तरह  विलाप कर रहे उस समय तुलसी दास जी लिखते है –

“सुत वित्त नारि भवन परिवारा, होहि जाहि जग बारहि बारा
अस विचारि जियँ जागहु ताता,मिलई न जगत सहोदर भ्राता”

अर्थात इस संसार मे बेटा, धन, पत्नि, भवन, और परिवार यह सब बार बार मिल सकते है लेकिन जीवन मे सगा भाई बार बार नही मिलता ऐसा विचार करके मेरे भाई तुम जाग जाओ

यह सब उस भाई की बात है जो अपने भाई की सलाह को मानता है और एक दुसरे मे प्रेम होता है और इसी प्रसंग मे रावण और कुम्भकरण का भी जिक्र किया गया है लेकिन रावन अपने भाईयो की सलाह नही मानता जिसके लिये लिखा है, जब कुम्भकरण को पता चलता है कि रावण सीतामैया का हरण करके ले आया है और अब युद्ध जीतने की सोच रहा है तब सलाह दी थी,“जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान” 

जब भाई भाई से अलग हो जाता है या यह कहे जब भाई भाई को लात मार कर भगा देता है तब भाई आयु हीन हो जाते है “ अस कही चला विभीषण जबहि आयुहीन भये सब तबहि” ऐसे बहुत उदाहरण है जो यह सिखाते है कि जो अपने भाईयो की बात मानता है अपने परिवार से मेलजोल रखता है वह निश्चित ही जीवन मे सफल होता है और जो नही मानता वह बर्बाद हो जाता है,

महाभारत मे भी कई ऐसे प्रसंग मिलते है जिसमे भाई का जिक्र आते ही मित्रता फीकी पड जाती है जब कर्ण को पता चल जाता है कि पान्डव मेरे भाई है और कुंती माता है तो उसने भी अपने बहुत अच्छे दोस्त के साथ धोखा कर दिया और अपनी माता को वचन दे दिया कि तेरे बेटे पांच जीवित रहेंगे, यहाँ बात वचन की नही भाई के प्रति प्रेम की है, जब सगा भाई पीडा मे होता है दुःख जरूर होता है,

भाई और दोस्त मे एक लक्ष्मण  रेखा होनी चाहिये भाई भाई होता है और दोस्त दोस्त होता है मेरी नजर मे भाई का  स्थान सदैव दोस्त से ऊंचा ही होता है जब यह बात सभी के समझ मे आ जायेगी तो यह जीवन बहुत ही सुंदर हो जायेगा