Saturday 21 February 2015

मै प्रगति पथ का पथिक हुँ.....

             
             इस कविता को मेरे परमपुज्य पिताजी वैद्य श्री माल चंद जी कौशिक ने लिखा है मेरे पिता जी ने जीवन मे बहुत ही तप किया था उसी का भाव यहा प्रगट किया गया है पुज्य पिताजी को मैने मेरा आदर्श माना है मुझे उनकी प्रत्येक कविता से मार्ग दर्शन मिलता है उनके गुरु जी आचार्य श्री राम शर्मा (गायत्री परिवार) पिताजी को अक्सर भालचंद्र कहते थे इस लिये उन्होने अपनी कविताये ज्यादातर वैद्य भालचंद्र के नाम से ही लिखी है भालचंद्र सच मे महादेव शंकर जी के पुत्र श्री गणेश जी का नाम है जो कि बहुत ही सरल और सादगी प्रिय देवता है उसी तरह पिताजी का स्वभाव भी बडा ही सरल और सादगी पुर्ण था पिताजी को हम सभी परिवार वाले बापुजी कहते है,  बापुजी हमेशा कहते थे कि "पिता कभी मरते नही है पिता हमेशा जिंदा रहते है अपने बच्चो के व्यवहार मे,विचार मे" अब बापुजी  इस दुनिया मे नही है लेकिन मेरे मन मे उनके विचार अभी भी है और मेरे पास उनकी लिखी कविताये है जिन्हे मै मेरे जीवन मे उतारने की कोशीश करता हू ,इन कविताओ मे जीवन का रहस्य छुपा हुआ है-
              मै प्रगति पथ का पथिक हुँ विपद नद से क्यो डरुंगा
               सूख कर रह जायेगा यह,आचमन जब एक लुंगा

         राह मेरी रोक ले तुफान ऐसा कौनसा है
          गा ना पाऊँ मै प्रगति का गान ऐसा कौनसा है

         दुष्टता का दमन प्रतिदिन शिष्टता से मै करूंगा
         मै प्रगति पथ का पथिक हूँ विपद नद से क्यो डरूंगा

               आ मिली है प्राण सरिता मे प्रबलतम धार कोई
                कर रहा है मर्म स्थल पर,आज तीव्र प्रहार कोई

                कह रहा है यह अंधेरा, क्यो बता छाया यहाँ
                तु ठगा सा देखता है, लुट गया पौरूष कहाँ

    आग धधकी है ह्र्दय मे, ज्योति बनकर मै जलूंगा
   मै प्रगति पथ का पथिक हुँ विपद नद से क्यो डरुंगा

                  वैद्य भालचंद्र जी कौशिक "वैद्य जी बाबा जी"

              और भी बहुत कविताये है जिन्हे मै जब समय मिलेगा तब शेयर करता रहुंगा ..

No comments:

Post a Comment