Wednesday 13 April 2016

पंछी उडने को है ....


         मेरे बच्चे  ने अभी सोलह सावन ही पुरे किये है और सत्रवे मे बैठते ही उसने घर से दूर रह कर पढने की इच्छा मुझसे व्यक्त की तो मेरे मन मे उमंग की लहरे छा गई, किसी किसी को तो जबर्दस्ती बाहर भेजना पडता है जबकि मेरा बच्चा खुद ही मुझे बोल रहा था, मुझे गर्व है मेरे बच्चो पर दोनो ही बहुत ही समझदार है और निर्णय लेने मे भी पुर्ण समर्थ है, बच्चा तो हर काम सीखने मे बहुत ही तेज है अपनी छोटी बहिन से भी कुछ सीखना हो तो हिचकता नही है जब मै ने उसे बताया कि” –बेटा जब बाहर जायेगा तो खाना बनाना, बाईक चलाना, कपडे धोना अपना काम खुद करना सब आना चाहिये वहाँ पर तेरे साथ मे मम्मी पापा नही होंगे सब निर्णय खुद ही लेने होंगे और परिस्थितिया भी हमेशा अनुकूल रहे, ऐसा नही होता है,  बेटा ! खुस रहने के दो ही उपाय है, आवश्यकताये कम रखे और परिस्थितियो से ताल मेल बैठाये यदि तुम यह सब कर सकते हो तो फिर तुम बाहर रह कर पढने मे सक्षम हो ” 

         मेरे इतना कहने के बाद सब काम सीखने मे उसकी दिलचस्पी देख कर मुझे यकीन हो चला था कि अब पंछी उडने की तैयारी मे है और जब पंछी सच मे दिल से उडने की तैयारी मे हो तो उसके उडने की तैयारी पुरी खुसी और उमंग से करनी चाहिये,

         लेकिन माँ तो माँ ही होती है बेटा कितना ही बडा हो जाये वह उसे हमेशा बच्चा ही समझती है उसके मन मे  भय सा छा गया,वह सोचने लगी कि कैसे अकेला रह पायेगा तो बच्चे ने एक महिना छात्रावास मे बिताया और यह विस्वास दिलाया कि जब कोई कुछ करने की ठान लेता है तो कर ही गुजरता है मुझे मेरे परम पुज्य पिता जी कहते थे – बेटा जो जैसा सोचता है और करता है वह वैसा ही बन जाता है यही बात मै मेरे बच्चे से भी कहना चाहता हुँ लेकिन मुझे लगता है आजकल के बच्चे हमारे वक्त के बच्चो से एड्वांस तो है ही, लेकिन फिर भी माता- पिता का कर्तव्य होता है कि कुछ बाते तो बच्चो को सीखानी ही चाहिये

        प्रसिद्ध साईंटिस्ट अलबर्ट आईंसटीन लिखते है – “विज्ञान  अध्यात्म के बिना अंधा है और अध्यात्म विज्ञान के बिना  लंगडा है मै जब आज से करीब चौबीस वर्ष पहले कोचिंग करने जयपुर गया था तो मुझे मेरे पिताजी ने गायत्री चालिसा देते हुये कहा – “बेटा यह माँ गायत्री का चालिसा है इसे रोजाना एक बार तो अवश्य ही पढना मन  शांत रहेगा” जब मन शांत रहता है तो सब कुछ अच्छा अच्छा लगता है आज की भाषा मे बोले तो मन पोजिटिव रहता है, मै भी मेरे बच्चो को यह बताना चाहता हुँ कि पढाई के साथ साथ थोडा आध्यात्मिक भी होना चाहिये,क्योकि सफलता प्राप्त करने के लिये पोजिटिव रहना बहुत ही जरूरी है, जब उडना है तो हौंसला भी होना ही चाहिये,

        जब उडने वाली बात हो तो हनुमान जी से ज्यादा उडने वाला कौन हो सकता है लेकिन हम जब आगे बढने को होते है तो हमे यह कदापि आभास नही रहता कि बहुत लोग हमसे पिछे छुटते जा रहे है जब कोई पिछे रह जाता है तो वह मन से बडा ही दुखी होता है कुछ लोग जीवन मे ऐसे भी मिलते है जो हमारी परीक्षा लेना चाहते है कुछ बहुत ही प्रतिस्पर्धा रखते है कई लोग तो बहुत ही खतरनाक तरीके से छुप कर घात पहुचाते है, मै मेरे बच्चो को डरा नही रहा हुँ, बल्कि उन्हे आगाह कर रहा हुँ कि दुनिया मे सब कुछ अपने अनुकूल ही हो ऐसा नही होता है  इसलिये कुछ बाते धार्मिक ग्रंथो से भी ग्रहण कर लेनी चाहिये, 

        यह बात बताने के लिये मैं ने बच्चो को एकबार सुंदरकांड की कुछ घटनाये जीवन से जोड कर बताई थी मुझे विश्वास है उन्हे अवश्य ही याद होंगी फिर भी मै एक बार मेरे बच्चो को नही सभी बच्चो को बताना चाहता हुँ कि जब हम उडने की तैयारी करे तो हमेशा पोजिटिव रहे पोजिटिव का मतलब अपनी क्षमता और अपने लक्ष्य को कभी ना भुले जैसे हनुमान जी कहते है “राम काज किन्हे बिनु मोहे कहाँ विश्राम”  जब जामवंत जी ने हनुमान जी को बल याद दिला दिया तब हनुमान जी अपना बल याद करके चल पडे तो उनके साथ नौ  घटनाये घटती है,जिन्हे मै यहाँ पर प्रासंगिक समझता हुँ, क्योकि सीता माता का पता लगाने के लिये की गई उडान भी मंजिल पाने की उडान से कम नही थी,

        पहली घटना – सुमेरू पर्वत का मिलना, जो कि हमे यह सिखाती है कि आराम करने मौज मस्ती करने  के कई साधन मिलेंगे लेकिन जब तक लक्ष्य प्राप्तनही हो ऐसे मौज मस्ती से दूर ही रहना सही है ऐसी मौज मस्ती को नमन करते हुये शमन करे दमन नही ,

         दुसरी घटना  – सुरसा का मिलना, यह संदेश है कि बहुत ही कम्पिटिशन है और कम्पिटिशन करना भी है लेकिन यदि प्रतिस्पर्धा बहुत ही नाजुक हो जाये तो   और अपने लक्ष्य मे बाधा बन रही है तथा मानसिक परेशानी पैदा कर रही हो  तो हार मान कर उसको छोड कर मन को अपने लक्ष्य मे ही लगाओ, जब जब सुरसा बदनु बढावा तासु दून कपि रूप दिखावा, शत जोजन जेहि आनन किन्हा अति लघु रूप पवन सुत लिन्हा” छोटा बनने मे कोई बुराई नही है बस सोच हमेशा बडी रहनी चाहिये,
 
        तीसरी घटना  – छाया देख कर खा जाने वाली राक्षसी का मिलना, यह घटना हमे सचेत करती है कि छुप कर धोखा करने वालो से सतर्क रहनाचाहिये और उन्हे छोड ही देना चाहिये

        चौथी घटना - सुंदर सुशोभित लंका दिखाई देना,यह है मंजिल की जगह जो हमे दिखाई तो दे रही है लेकिन बहुत ही  पहरो के अंदर है चारो तरफ पहरेदार लगे है,बहुत ही सुंदर है मोहित करने वाली है,"वन बाग उपवन वाटिका शर कूप वापि सोहहि, नर नाग सुर गंधर्व कन्या रूप मुनि मन मोहहि" इस मंजिल पाने के स्थान पर मौज मस्ती के सब साधन होते है हर प्रकार की सामग्री है मन को भ्रमित करने के लिये, बहुत से पहरे लगे है इसके भीतर घुसना बहुत ही कठिन है लेकिन नामुमकिन नही है,

       पांचवी घटना – मच्छर का रूप बनाना यह बताती है कि छोटा बन कर रहो लोग आपकी प्रतिभा को अपने आप पहचान लेंगे आप अपने मुँह मिठू मत बनो, मौज मस्ती का शमन करो अपने आपको जानने की कोशीश करनी चाहिये

        छठी घटना – लंकीनी का मिलना- मच्छर के समान रूप धारण करने पर भी कुछ लोग मंजिलकी तरफ बढते कदम रोक देते है तब उनका मुकाबला पुर्ण ताकत से करना चाहिये

        सातवी घटना- विभीषण का मिलना,जब हम बहुत ही सरल और सामान्य व्यवहार रखते है तो हमे अपनी मंजिल बताने वाले माईल स्टोन मिलने लगते है,
   
        आठवी घटना – सीता का मिलना बस यही तो है मंजिल मिल ही गई समझो लेकिन बाधा अभी भी आ सकती है लेकिन जब पोजिटिव सोच रहती है अर्थात राम जब साथ होते है तो कुछ भी असम्भव नही होता है अंग्रेजी मे एक कहावत है - everything is possible if god touch is there.
 
        नवी घटना – लंका को जलाना, मतलब सभी बाधाये चीर कर मंजिल प्राप्त कर लेना,


        मेरे  बच्चो ! जब मंजिल मिल जाती है और हम जब अपने लोगो के पास वापिस खुसी मनाते हुये आते है और फिर जो आनंद की अनुभूती होती है उसे बयान करना बहुत ही मुश्किल है

       हम कितने ही अच्छे हो लेकिन समय और परिस्थिती कब और कैसे बदल जाये इसे कोई नही जान सकता, मेरे बच्चो मै तुन्हे कोई बंधन मे नही डाल रहा हुँ, कि पुजा पाठ मे ही लिप्त रहो लेकिन सदैव अपने आपको याद रखो, खुद को जानो और खुद से सिखो, मेरे बच्चे को मैने एक ही बात कही है – “ बेटा ! किसी के लिये तुझे पढने की जरूरत नही है बस अपने लिये ही पढना.. फिर  तुझे  इस  गगन मे इस आकाश  मे स्वछंद उडने  से  कोई  भी  नही रोक  सकता.

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