Thursday 16 July 2015

मन क्यो भटक रहा है ....?

जब मै किसी भी व्यक्ति से मिलता हुँ तो वह अपने दुःखो का वर्णन करता है बार बार एक ही बात दोहराता है कि "मै बडा दुःखी हुँ" , या फिर कहेगा कि "ठीक हुँ पर आप जैसा सुखी नही हुँ" यह एक आदमी की सोच नही है यह सब लोगो की सोच हो गई है, सब कुछ है फिर भी कुछ भी नही है,
 महात्मा लोग कहते है कि यह सब मन का भटकाव है मन मे ही तरह तरह के सुख और दुख की तरंगे निकलती रहती है आधुनिक विज्ञान भी इस बात का समर्थन करता है कि ये सब मन मे उठने वाली तरंगे है इन को शांत करने से सुख  दुख का अहसास नही होता,
चिकित्सा करते समय कई बार ऐसी दवा का प्रयोग किया जाता है जो दर्द का अहसास नही होने देती, अब देखो दर्द तो है लेकिन दर्द का अहसास नही हो रहा क्योकि नर्वस सिस्टम को बंद कर दिया गया मस्तिष्क तक सुचनाये नही पहुँच रही इस लिये दर्द नही हो  रहा है, इसी प्रकार मन का भी यह ही हाल है हम जब मन की परिवेदनाये मस्तिष्क को पहुँचाहते है तो फिर सुख और दुख उत्पन्न होते है
"यह सब कहने की बाते है कोई भी इस जगत मे नही है जिसका मन भटकता नही हो"मेरे एक मित्र  ने मुझसे तत्काल ही पुछ लिया -"क्या आप जानते है ऐसे किसी भी व्यक्ति को जो सुख दुख से दूर हो ?" मै सोचने लगा कि मेरी जान पहचान मे तो कोई भी ऐसे व्यक्ति का सामना नही हुआ फिर लोग क्यो हजारो उदाहरण देते है कि फलाँ आदमी ऐसा था, इसकी क्या वजह है , मै भी बैठा बैठा सोचता रहता हुँ कि कौन होगा ऐसा जो सुख दुख से दूर हो,
क्या परमात्मा के नाम पर दुकान चलाने वाले ऐसे होते है,या फिर जो पागल हो गये वे लोग ऐसे है, पागल हो सकते है क्योकि उनका मस्तिष्क  काम नही करता होगा शायद,  क्योकि दिमाग की क्रिया खराब हो जाती है तभी तो वह पागल कहलाता है और महात्मा जो दुकान चलाते है वे भी ज्यादातर भांग या गांजा के नशे मे धुत्त रहते है इसलिये उनका दिमाग भी कम  ही काम करता है ,इस लिये दिमाग तक परिवेदनाये जाती नही है और सुख दुख का अहसास होता ही नही है चाहे ये घटना कुछ देर तक ही क्यो ना, होती जरूर है , तब तो सभी नशेडी भी इसी श्रेणी मे आ जाते है, हो सकता है लोग इसीलिये शराब जैसे नशीले पदार्थो को पीते हो, कि इस लफडे से कुछ देर तो दूर रहे ,इस प्रकार की दवाईयाँ भी आती है जो सुख दुख का अहसास नही होने देती, लेकिन ये सब तो तरंग को कुछ देर ही शांत करती है कोई ऐसा है  जो कि हमेशा के लिये तरंगो को शांत कर चुका हो,
 कोई ना कोई तो होगा ही जो सुख दुख से दुर है क्योकि जब कोई भी नही था तो इतना सब प्रवचनो मे क्यो कहते है प्रत्येक महात्मा के  प्रोग्रामो मे यह बात कही जाती है क्यो ? इस बात का जबाव किस के पास होगा कौन बतायेगा ये सब कि मन क्यो भटक रहा है ....? और कैसे शांत होंगी ये मन की मस्तिष्क तक जाने वाली तरंगे .....?


No comments:

Post a Comment