Thursday 14 April 2016

समझो सबमे साँई है

  आज मेरे मन मे यह भाव आया कि लोग क्यो अपने ऊंचेपन का घमंड करते है यह गर्व उन्हे पतन की ओर ले जाता है यह कविता आभाष दिलाती है कि हम चाहे कितने ही ऊंचे हो जाये लेकिन एक दिन धरातल पर जरूर आ जायेंगे, आज मेरे मन के भाव मे पढे मेरे परम पुज्य पिताजी की यह कविता ......    

ऊँचे पन का गर्व ना करना ,ऊँच नीच अस्थाई है
समता की महिमा संतो ने सबसे बडी बताई है

ऊँचे सुरज को प्रतिदिन ही , ढलता हुआ देखते है
वृक्ष बने छोटे अंकुर को, फलता हुआ देखते है
ऊँचे ऊँचे हिमखंडो को, गलता हुआ देखते है
सुक्ष्म चेतना के बल जड को, चलता हुआ देखते है
अणु मे वही विराट छुपा है , देता विश्व दिखाई है
ऊँचे पन का गर्व ना करना, ऊँच नीच अस्थाई है

बडे बडे धनवान धरा पर भिक्षुक बनते देखे है
रंक बने भुपाल भूमी पर, इतिहासो मे लेखे है
मुर्ख बने विद्ध्वान यहाँ पर, विद्ध्वानो की हंसी उडी
महानगर विद्ध्वस्त हो गये , जंगल मे है भीड जुटी
बिना आत्म चिन्तन के , शांति ना मिलने पाई है
ऊंचे पन का गर्व ना करना, ऊंच नीच अस्थाई है

भूख प्यास सबको लगती सब रोते हंसते आये
सोते जगते है सब प्राणी, जन्म लिया मरते आये
राग द्वेष की घोर घटाये, संघर्षो को बरसाती
यही प्यार की गंगा बहकर, सबको शीतल कर जाती
द्वंद मुक्त को रोक ना पाती, ऊंच नीच की खाई है
ऊंचे पन का गर्व ना करना ऊंच नीच अस्थाई है

अहम पुष्ट करने की खातिर, छल छदमो को अपनाते
बडे बडे पदवी धारी, निज कर्मजाल मे फंस जाते
स्वार्थत्याग –परमार्थ पथिक बन, जो जन आगे बढ जाते
उनकी महिमा का बखान कर, बुद्ध जन उनके गुण गाते
हो व्यवहार भेद बेशक, पर समझो  सबमे साँई है
ऊंचे पन का गर्व ना करना ऊंच नीच अस्थाई है

 परम आदरणीय श्री वैद्ध्य मालचंद्र जी कौशिक  की लिखित यह कविता एक बहुत ही बडा संदेश देती है मुझे मेरे पिताजी की कविताये बहुत ही प्रभावित करती है तथा मार्गदर्शन भी करती है मुझे इस कविता को पढने के बाद यह आभास हुआ कि सच मे ही ऊंचापन अस्थाई है,मेरे पिताजी मेरे गुरू जी भी है,  मेरे अलावा उनके बहुत शिष्य है उन सभी के लिये उनके द्वारा लिखे यह अनुभव मै शेयर करता रहुंगा, आप भी पढे और अपने इष्ट मित्रो को भी पढाये ,

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