Thursday 2 June 2016

अंधेरा घिर आने से पुर्व---

       जब भी मेरे मन मे निराशा का भाव आता है मै हमेशा इस कविता को पढता हुँ, इसके अंदर छुपे गहरे आध्यात्मिक भावो को महशूस करता हुँ ,जिससे मुझे बहुत ही शकून मिलता है और मन मे एक उत्साह का आभास होने लगता है, मेरे पिताजी की लिखी कविताओ मे से यह एक बहुत ही प्रेरणादायक कविता है, यह कविता "गायत्री उपवन" नामक मासिक पत्रिका मे छप चुकी है,

        मेरे पास संग्रह के रूप मे रखी हुई थी,इस प्रेरणादायक कविता से आप भी प्रेरणा ले और जीवन को सुखद और आनंद दायक बनाये...

 अंधेरा घिर आने से पुर्व-----

अंधेरा घिर आने से पुर्व प्रवज्वलित दीप करे तैयार
भला फिर क्योहोंगे ,भयभीत प्रकाशित होंगे जब सब द्वार

स्वप्नवत है सारा संसार, यहाँ के मिथ्या सब व्यापार
सभी को रहना दिन दो चार अंत मे जाना हो लाचार
मृत्यु के आघातो से पुर्व करेंगे प्राणो का उपचार
भला फिर क्यो होंगे संतृस्त शक्ति युक्त होंगे जब आधार
अंधेरा घिर आने से पुर्व .....

अनय का भीषण झंझावात, कर रहा जन मन पर आघात
मनुजता हो बैठी उद्द्यंड, भौतकी धारा हूई प्रचंड
भंवर मे फंस जाने से पुर्व, करेंगे बेडे का उद्धार
भला फिर क्यो होंगे क्षति ग्रस्त, नदी को कर लेंगे जब पार
अंधेरा घिर आने से पुर्व ........

देखकर हमको युँ सन्नद्ध, विघ्न भी हुये श्रंखला बद्ध
किंतु हम निर्भय होकर चले, शांति के कुंजो बीच पले
समर मे सो जाने से पुर्व करेंगे रिपुपर प्रबल प्रहार
भला क्यो होगी अपकीर्ति जब मनाये नित्य मरण त्यौहार
अंधेरा घिर आने से पुर्व ......

  लेखक-- वैद्य श्रीमालचंद्र जी कौशिक "वैद्यजी बाबाजी" 

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