Saturday 18 November 2017

जीवन बन्धन मुक्त होना चाहिए .....

जीवन में जब कोई बंधन होता है तो बहुत ही समस्याओं का सामना करना पड़ता है । सभी जीवो को स्वतंत्रता पसंद आती है । स्वतंत्रता ही जीवन का सबसे बड़ा आनंद है । मुझे यह अहसास बहुत बार हुआ है । मैंने मेरे जीवन में इसको कई बार अनुभव भी किया है ।लेकिन अभी तक पूर्ण स्वतंत्रता नही मिली है कभी पढ़ाई का बंधन कभी लक्ष्य का बंधन कभी अपनों का बंधन कभी परिवार का बंधन जब सब बन्धन समाप्त होने लगे तो फिर जीवन के एकाकीपन का भी भयंकर बन्धन सा महशुस होने लगता है ।

आज मुझे एक वाकया याद आ रहा है जिसने मुझे उस वक्त ही अहसास करवा दिया था कि बन्धन कितना भयानक हो सकता है लेकिन उस वक्त मेरे समझ में यह बात नही आई जो आज समझ में आ रही है । एक कहावत है कि हम अपनी आँखों से खुद को नहीं देख सकते । हमारी खुद की आँखों से खुद का दीदार नही होता है । हम अपनी नाक को लगातार नहीं देख सकते । क्योंकि प्रकृति ने हमे ऐसा नही बनाया है कि हम इतनी नजदीक की वस्तु को देख सके । मेरे कहने का तात्पर्य है कि हम जिस वस्तु के या किसी भी व्यक्ति से जितने नजदीक होते जाते है वह उतना ही कष्ट देने वाला लगने लगता है । हमें प्रकृति ने कुछ इस तरह का ही बनाया है ।

प्रकृति ने सभी प्राणियों को श्वास लेने के लिए जगह बनाये रखने की जरुरत बताई है । हमारे सभी के अंदर एक दूसरे से थोड़ी दूरी बनाए रखने की बहुत ही जरूरत बताई है हम जितने नजदीक रहेंगे अपने आप में बन्धन महशुस करने लगेंगे  और जब ज्यादा नजदीक होंगे तो विकास भी संभव नही होगा । विकसित होने के लिए एक निश्चित दुरी होना जरुरी है जिस प्रकार किसी पेड़ पौधों के विकास के लिए दूरिया जरूरी है । उसी प्रकार मानव के विकास के लिए या सम्बन्धो के विकास के लिए कुछ निश्चित दूरिया बहुत ही जरुरी है ।

जब हम ज्यादा नजदीक रहते है तो बन्धन महशुस करने लगते है और हमारा विकास अवरुद्ध हो जाता है । कभी कभी तो जब उस बन्धन को जबरन अलग करने की कोशिश करते है तो बहुत ही हानि भी उठानी पड़ती है । मुझे आज भी मेरे बचपन की एक घटना याद है जिसमे मैंने यह समझ लिया था कि नजदीकियां प्रेम बढाती है जबकि बाद में पता चला कि नजदीकियां तो बहुत नुकसान भी करवा सकती है ।

बात उस समय की है जब मैं छठी कक्षा में पढ़ता था । मैं और मेरा बड़ा भाई,  दोनों जने स्कूल से छुट्टी होने के बाद और सरकारी छुट्टी के दिन हमारे घर में रहने वाली दो भैसों को खेत में चराने जाते थे । हम दोनों भाइयो में बहुत ही प्रेम और लगाव था हम एक दूसरे के बिना बहुत ही कम रह पाते थे । बचपन था । बचपन का लगाव आज तक अनवरत है । लेकिन अब हम ज्यादा नजदीक नही है बस कभी कभी ही मिल पाते है । हमारा प्रेम दूरियों की वजह से पहले जैसा तो नही है लेकिन फिर भी कम नही है । लेकिन उन दिनों बहुत ही ज्यादा था हम एक दुसरे के गले में बांहे डाले ही घूमते फिरते थे । सारे सारे दिन साथ साथ ही रहते थे ।हमारा खेलना खाना सब साथ साथ ही होता था । और हम चाहते थे कि हमारी भैंसे से भी साथ साथ ही रहे । अलग न हो । हमारी तरह ही गलबाहे डाले डाले ही खेत में घूमती फिरती रहे और घास भी साथ साथ ही खाये । हम बार बार उनको एक जगह कर देते लेकिन व थोड़ी देर  साथ साथ चरती और फिर अलग हो जाती । यह ही प्रकृति का नियम है कोई भी सजीव लगातार साथ साथ नही रह सकता । अलग रहना , थोड़ा दूरिया बनाना स्वाभाविक है । लेकिन मुझे यह बात अच्छी नही लगी । बचपन था , नहीं जान पाया कि क्या नियम है क्या स्वभाव । मैंने दोनों की पूंछ को पकड़ा और बाँध दिया । दोनों भैंसे अब साथ साथ आराम से एक ही जगह चारा खा रही थी हम दोनों भाई आराम से खेल रहे थे । एकदम मस्ती में, बिना किसी बात की परवाह किये । लेकिन थोड़ी ही देर बाद वे दोनों भैंसे अपना अपना रास्ता नापने लगी । अब उन्हें वह नजदीकियां बन्धन लगने लगी । और वे अलग होने के लिए छटपटाने लगी ,मैंने और भाई ने बहुत कोशिश की उन्हें साथ साथ रखने की,उनका सिर और सींग पकड़कर नजदीक लाने के बहुत प्रयास किये , लेकिन जब बन्धन तोड़ने की कोशिश होने लगती है तब फिर कोई भी प्रयास उस बन्धन को रोकने में सक्षम नही होता है । ऐसा ही वहां पर हुआ । बन्धन टूट गया और  जिनमे ज्यादा ताकत थी उसने ज्यादा जोर लगाया और जिसमें कम ताकत थी उसकी पूँछ टूट गई और खून ही खून बहने लगा । इतनी भयंकर पीड़ा के बाद भी उनमें जो स्वतंत्रता का आनन्द अनुभव हो रहा था वह बन्धन में नही था ।

प्रेम अपनी जगह है और प्रेम में जो बन्धन है वह अपनी जगह है । एक दूसरे में प्रेम होना चाहिये लेकिन प्रेम में, रिस्तो में, व्यवहार में , जो नजदीकियां होती है वे यदि बन्धन बन जाती है तो फिर रिस्ते , सम्बन्ध, प्रेम और व्यवहार नही रह पाते है ।

जीवन कितना ही प्रेमपूर्ण हो लेकिन हमेशा जीवन बन्धन मुक्त होना चाहिए । जब प्रेम में , रिस्तो में , सम्बन्धो में , या व्यवहार में बन्धन महशुस हो तो एक बार थोड़ी सी दुरी बना लेने में ही फायदा है ।वरना परिणाम भयंकर हो सकते है ।

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