Sunday 2 April 2017

बहुत मुश्किल है तेरे बिन......

सब कुछ कर सकता हूँ , तुम जाओ रह लूंगा तेरे बिन।
कहना सरल था, पर रहना, बहुत मुश्किल है तेरे बिन ।।

जब बैठी तुम सहमी सी , ट्रैन की भीड़ भरी सीट पर ।
अपने आपको समझाती सी,मेरी नजर थी पीठ पर ।।
तू कह रही थी मुझको , खाना खाने को प्रतिदिन ।
कहना सरल था, पर रहना , बहुत मुश्किल है तेरे बिन।।

ठंडा खाना मुझे भाता , तुम तो गरमा गरम देती आई ।
तेरे जाने के बाद, आज , ठंडी रोटी मुझे नही भायी ।।
गरम बना कर भी खाई, तेरी जैसी नर्म नही लेकिन ।
कहना सरल था .........

बर्तन साफ , रगड़ रगड कर , बिलकुल चमका दिए ।
तुम बिन जीने की कोशिश ने , घर को भी साफ किये।।देखा गिलास एक तो , चिकनाई छुपकर करे तोहिंन।
कहना सरल था ........

झाड़ू भी लगा ही लेता हूँ  , कपड़े धोने को भी बैठ गया।
तुम बिन जीने का , सारा मैथर्ड अब मैं सीख गया ।।
पोंछा लगाना दिखता सरल है , पर लगता है कठिन।
कहना सरल था ...

अब क्या करूँ ? तुमको तेरे माता पिता से प्यार है ।
भाई भोजाई और,  भतीजा भतीजी से भी प्यार है ।।
तुम्हारे प्यार में मैं कह रहा, अब आओगी किस दिन।
कहना सरल था ...

ये प्यार है "वेद" का , तेरे बिन जीने का एक बहाना है।
तुम मिलो अपने प्यारो से, मेरे संग जीवन बिताना है।। दूर रहकर भी ,आँखों में घूम रहा है सिर्फ़ तेरा सीन।
कहना सरल था ......

#Dr Vedprakash kaushik

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