Saturday 19 November 2016

मन में उमंग है

मन में उमंग है मेरे, कोई है ,जो जगत को चला रहा है।
मुझ जैसे पाखंडी को , पल पल कैसे सजा रहा है ।।
मन को छूने वाली सच्ची बाते, मुझको कह रहा है ।
अहंकार को कर परास्त , आज मुझे समझा रहा है।।

मै तो कितना बदल गया,किस तरह जीवन जी रहा हूँ ।
अपने पराये का भेद न था,सब अपना ही कह रहा हूँ।।

मैने बहुतो को दुःख दिया है , माटी पलीद करता रहा हूँ।
गुस्से का सैलाब उमड़ता था, जिंदगी घसीट ता रहा हूँ।।
आज लगता है सब गलत किया , क्यों किया पता नही।
उसकी एक नजर पड़ी तो , मै कही पर भी टीका नही।

वह बलवान, मै नादान, जीवन गवां के पूछ रहा हूँ ।
मै तो कितना बदल गया, किस तरह जीवन जी रहा हूँ।।

सुहाता था क्या ? मुझे, कोई आँख उठाके तो देखले ।
जुबान खींच लू उसकी ,गर कोई कह कर तो देखले ।।
काम, क्रोध, मद लोभ ,नरक से सब मुझमें साकार थे ।
एक पल भी सुख़ी ना था, चाहने वाले बड़े लाचार थे ।।

उसने सिखाया जीवन क्या है,अब उसकोे  पूज रहा हूँ।
मै तो कितना बदल गया, किस तरह जीवन जी रहा हूँ।।

वो कौन है कैसा है किसने उसे देखा है,कोई तो बता दे ।
उससे मिलकर जीवन,क्यों सँवरता है ,कोई तो बता दे।।
मिला नही अब तलक, पर खोजकर रहूँगा एक दिन।
मिलेगा मुझको विश्वास है, दुनिया कहा है उसके बिन।।

अब उमंग है तरंग है , मै बदला बदला सा जी रहा हूँ।
मै कितना बदल गया ,किस तरह जीवन  जी रहा हूँ।।

हिलोरे उठ रही है , प्रेम की कोई धार सी निकल रही है।
तब सिर्फ "वेद" था ,अब दुनियां "प्रकाश"  कह रही है।।
कभी ज्ञान नही था , अब ज्ञानपुंज सा चमक रहा हूँ।
मेरे प्रभु अब तेरी शरण में , मै ये जीवन जी रहा हु।।

कोई तो समझो मेरा चिंतन , क्या मैं कही बहक रहा हूँ।
मै कितना बदल गया,किस तरह जीवन जी रहा हूँ।।

डॉ वेदप्रकाश कौशिक

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