Wednesday 18 January 2017

बसा किसी और को दिल में .....!

देखते ही उसको , दिल मेरा, ना जाने  क्यों मचलता है।
मै जब भी देखूं उसको तो ,  मुझे ऐसा क्यों लगता है ।।

कशिश सी उठती है,  उसका सामीप्य पाकर ।
क्या करू कैसे कहूं, उसको , समीप उसके जाकर।।

जब कभी वो नहीं थी, तब भी यह नादां यूँ कहता है ।
क्यों यह बार बार  , उसके लिए तड़फता रहता है ।

कभी भी उसकी बातों से, जीवन संवार न पाया  । हर बार उसको  मैने , अपने से जुदा ही  पाया   ।।

कभी वो कभी कोई और , मेरे जेहन में घूमती रही हैं।
उसके जैसी आज तक , हजारो आती जाती रही है ।।

मगर दिल तो कभी एक जगह टिकता ही नही था ।
वो समझने रूकती ,मै पलभर भी रुकता नही था ।।

आती रही जिंदगी में मेरे,एक से एक दिल के करीब।
कभी कोई अमीर,कभी कोई जवां ,कभी कोई गरीब।।

मगर आजकल "वेद" , तुझको ये क्या हो गया है ।
कोई तुझे चाहता है नही, फिर भी कही खो गया है।।

कैसे कोई आकर, अपना आसिया बना सकता है।
किसी के बिना खुद, अकेले कैसे समा सकता है ।।

शायद वो पहले से ही समाया हुआ था मेरे दिल में ।
मुझे कभी कभी ,आहट सी होती थी इस दिल में ।।

सभी में मुझे प्यार की तलाश थी , पर मिला नही ।
आज जब मिला तो , लगा किसी से कोई ग़िला नही।।

अब तो "वेदप्रकाश" , कुछ इस तरह बदल गया है ।
किसी और को बसा दिल में, खुद कही निकल गया है ।।

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